Monday, November 7, 2011

Resource Curse vis-a-vis thought for Alternative Approach of Development

दुनिया के अर्थव्यवस्थाओं में जब पुनर्निर्माण हो रहा था और नए अर्थव्यवस्थाओं का उद्भव हो रहा था, इसी दौर में लम्बे संघर्षों के बाद भारत के रूर कहे जाने वाले पठारी प्रदेश झारखण्ड का जन्म हुआI हममे से हरेक कोई अगर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस प्रदेश से सम्बंधित हैं तो हमने झारखण्ड बनने की घटना को जरूर देखा या पढ़ा होगाI ज्यादा वक़्त न लेते हुए हम ये कहना चाहते हैं कि-चलो भूतकाल की भूलों को भूलें, मगर भविष्य कि योजना के लिए सीख जरूर लें ताकि वर्तमान के साथ-साथ हम अपना भविष्य भी सुनिश्चित कर सकेंI

क्योंकि, झारखण्ड को भारत का रूर कहा जाता है, इसलिए इसे सोने कि चिड़िया कि तरह देखा जा रहा हैI ये पिछले दस सालों में स्वयंसिद्ध हैI जिस प्रकार भारत अंग्रेजों के गुलाम सोने की चिड़िया थी उसी प्रकार झारखण्ड देश के आतंरिक आर्थिक गुलामी झेल रहा है और सभी तथकथित प्रदेश के पुरोधा कहे जाने वाले लोग सोने के अंडे पाने की आड़ में आने वाले संतति के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही हैI मेरा सबसे अहम् सवाल है कि आर्थिक विकास की परिभाषा क्या है? क्या आर्थिक विकास के कारक जैसे सकल घरेलू उत्पाद, प्रति व्यक्ति आय, साक्षरता दर और प्रत्याशित उम्र इत्यादि वास्तव में हमारे कल्याण में सहायक हैंI 2010-11 के अनुसार झारखण्ड का विकास दर 6% है जो कि बिहार के विकास दर के आधे से भी कम हैI झारखण्ड अलग राज्य कि मांग पूरी होने के बाद तो इसकी कल्पना किसी ने न कि होगीI वस्स्तव में झारखण्ड का सकल राज्य घरेलू उत्पाद 2001-02 मे 9.10% तथा 2006-07 में 11% थाI आंकड़ा के अनुसार आप बता सकते हैं हम किधर जा रहे हैंI वैसे हमे इन आंकड़ों में बहुत ज्यादा विश्वास करने की भी जरूरते नहीं हैI अगर आंकड़ों में इतना दम होता तो दुनिया के सबसे गरीब प्रदेशों में गिने जाने वाले अफ़्रीकी देशों से भी नीचे हमें न गिना जाताI ठीक इसी तरह वर्तमान में अपनी किरकिरी करा चुके योजना आयोग के एक अध्यादेश जिसमे क्रमशः शहर में ३२ रुपये तथा गाँव में २६ रुपये कमाने वाला गरीब नहीं हैI चलिए हम सब इनसे पूछते हैं कि एक महीने के लिए आयोग वाले झारखण्ड के किसी गाँव में रहें, फिर इस तरह की आंकड़ों का खेल दिखाएँI वास्तव में इस दर से तो देश का हरेक भिखारी अमीर हो जायेगाI

2007-08 के अनुसार झारखण्ड का प्रति व्यक्ति आय 21,465 रुपये और साक्षरता दर 62% हैI अगर हम कहें राज्य के 90% सम्पति 10% नेताओं और कॉपोरेट घरानों में है, तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, अब आप समझ गए होंगे कि प्रतिव्यक्ति आय इतना ज्यादा क्यों है और उसका फायदा आम आदमी को क्यों नहीं मिलता हैI जब मंत्री बनने के तुरंत बाद कोई नेता अगर दिल्ली और गुडगाँव जैसे महंगे जगहों पे प्रोपर्टी ख़रीदे तो आप क्या समझेंगे,कि इनकी आय दिन दूनी रात चौगुनी कैसे हो जाती हैI अगर इंडेक्स मूल्य थोडा अधिक भी हो, तो ये Human Development Index(HDI) झारखण्ड के नेताओं और कॉर्पोरेट घरानों का है न कि आम जनता काI
शिक्षा के बारे में अगर मैं कुछ बोलूं तो सबसे पहले ये कि-सबों को दसवीं क्लास तक पास करने कि नीती को जितना जल्दी हो सके -पहले जैसा कर दें और जो छात्र, छात्रा को पढाई करने में कठिनाई या तनाव वो रहा है उसका हल खोजा जायेI मैं उन छात्रों को बताना चाहता हूँ जो अभी पहली से दसवीं के बीच में पढ़ रहें हैं कि आपको क्लेरिकल से बड़ी नौकरी के लिए नहीं तैयार किया जा रहा हैI वैसे तो मिशनरियों ने जितना शिक्षा और स्वास्थ्य में आदिवासियों के लिए जितना योगदान दिया है, उससे हमें कोई शिकायत नहीं है शिवाय उनके सिर्फ एक मंशा के/ वो हमें सिर्फ उतना ही शिक्षा देना चाहते थे /जितना से कि हम उनके बही खाते के ठीक ठाक लेखा जोखा कर सकें/ इसका मूल्यांकन आप रांची जैसे मुख्य शहर में कॉलेज क़ी स्थापना में लगा समय से अनुमान लगा सकते हैं/ और यही शिक्षा नीति हमारे लिए बदस्तूर जारी है/ बड़े लोगों और नेताओं को इससे क्या लेना देना, इनके बेटे बेटियाँ तो अछे प्राइवेट विद्यालय में पढ़ रहे हैं/ तो बाकी बचे लोग आपलोग क्लर्क बनते रहिये.......या वो भी नसीब न हो/

आगे झारखण्ड में अचानक बने अमीरों की कहानी है जिसमे मैं आपको आगाह करना चाहता हूँ कि झारखण्ड कि विनाश लीला चल रही है और उसपे हमें ब्रेक लगानी हैI आपको पता होगा कि हमारे नेताओं ने 104 कॉपोरेट घरानों से औद्योगिक समझौते किये हैं जिसमे इन्हें बिजली, पानी, जमीन और विद्युत् चाहिएI हमें मालूम है कि झारखण्ड का क्षेत्रफल 79, 714 वर्ग किलोमीटर है, सरकार के इन कारनामों को देखकर हमें नहीं लगता हमारे क़दमों के लिए कुछ जमीन बचेगी, पानी और जंगल तो भूल ही जाएँI हमारी सरकार वामनावतार के रूप में आयी हुई कॉर्पोरेट के दलाली कर रही हैI

हमारे राज्य का विकास हमारे जल जंगल और जमीन में ही निहित है, ये हमारे पूर्वज बहुत पहले कह गए है लेकिन हमें झारखण्ड के विकास का वैकल्पिक सिद्धांत नए तरीके से ढूँढना पड़ेगा जिससे कि राज्य का सर्वांगीन विकास हो, न कि पश्चिम के देखा देखी विकासI आपको शायद मालूम ही होगा कि यू. एस. में और इसके वाल-स्ट्रीट में अभी क्या चल रहा हैI न यू.एस. में और न ही यूरोप के कुछ देशों में जनता के लिए खर्च करने तक के लिए पैसे नहीं बचे हैंI हम झारखण्ड के विकास की परिकल्पना को भूल गए हैं जो हमारे पूर्वजों ने देखा थाI यहाँ पे हमारे पूर्वजों ने ग्राम स्वराज के नमूने का सपना देखा था जहाँ सभी वर्ग के लोग शांति पूर्वक जीवन निर्वाह कर सकें और भविष्य के लिए भी संसाधनों को संजोये रख सकेंI लोग महुआ और केंदु के पेड़ नहीं काटते थे और विपद्दा के दिनों के लिए हर गाँव में अन्नाकोश होता थाI पाढ़ा और पंचा कि परंपरा हमें हमारे पूर्वजों ने ही विरासत में दी हैI सत्तर के दशक में जंगल कटाई आन्दोलन को रोकने के लिए सिंहभूम में आदिवासी निकल पड़े थेI हमारे पूर्वजों ने प्रकृति को हमारे लिए संजो के रखा कि हम स्वत्छ हवा में जी सकें, और हम इससे अंधाधुंध औद्योगीकरण में बदल देना चाहते हैंI हम ये नहीं कह रहें हैं कि हमें उद्योग धंधों कि जरूरत नहीं है, बल्कि हम ये कहना चाह रहें हैं कि हमें, संतुलित विकास कि जरूरते है न कि अंधाधुंध MoU हस्ताक्षर करने सेI
विश्व के इतिहास के पन्नों को अगर आप पलट कर द्खेंगे तो पता चलेगा कि जहाँ प्राकृतिक संसाधनों कि प्रचुरता है वहां कभी शांति नहीं रही, चाहे हो मध्य पूर्व हो या केंद्रीय एशियाI विश्व के महान अर्थशास्त्रियों और अन्तराष्ट्रीय मौद्रिक संस्थान का भी मानना है कि जब तक हम योजना बद्ध तरीके से संसाधनों का प्रबंधन और दोहन नहीं करते है, तब तक ये संशाधन हमारे लिए शापित ही रहेंगे और एक सवाल उत्पन्न होगा-झारखण्ड में संशाधनों कि प्रचुरता है, लेकिन झारखंडी शापित कैसे? “THIS IS CALLED RESOUCE CURSE (आर्थिक संशाधनों का शाप)” हमें झारखण्ड के वैकल्पिक एवं आधुनिक आर्थिक विकास के सिद्धांत के लिए मिलकर काम करने कि जरूरत हैI